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Sunday, 30 March 2025

एक था इंदिरा सर्किल !


 - विकास का पुल लील गया थार का प्रवेश द्वार

- 40 साल पहले हुआ था चौक का नामकरण 

इतिहास लिखने के लिए अलग कलम नहीं होती, उसे तो सिर्फ घटनाएं और तथ्य चाहिए। घटना अच्छी हों या बुरी, इतिहास के पन्नों पर कोई फर्क नहीं पड़ता। सूरतगढ़ स्थित थार के प्रवेश द्वार 'इंदिरा सर्किल' का जमींदोज़ होना भी ऐसा ही एक तथ्य है जो देखते-देखते ही इतिहास बनने जा रहा है।  आने वाली पीढ़ियां बमुश्किल से यकीन कर पाएंगी कि कभी यहां शहर का सबसे व्यस्त चौक हुआ करता था।

सूरतगढ़। शहर की दक्षिणी पूर्वी दिशा में स्थित इंदिरा सर्किल, जिसे थार का प्रवेश द्वार माना जाता था, अब गुजरे जमाने की दास्तां बनने जा रहा है। अपनी आखिरी सांसे गिनता यह सर्किल विकास के पुल तले दफ़न होने की तैयारी में है। हालांकि शहर के इतिहास में यह पहली बार नहीं है। इससे पहले लाइनपार स्थित किसान नेता चौधरी चरण सिंह की स्मृति में बने चौक का भी ऐसा ही हश्र हुआ था। 

'घूमचक्कर' के नाम से प्रसिद्ध 'इंदिरा सर्किल' के इतिहास की बात करें तो लगभग 40 वर्ष पूर्व स्व. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की स्मृति में युवा कांग्रेस के कुछ उत्साही कार्यकर्ताओं ने यहां एक झंडा और फोटो लगाकर इस स्थल को इंदिरा सर्किल का नाम  दिया था। उन दिनों चौतरफा कांग्रेस राज हुआ करता था ऐसे में आपत्ति भी कौन करता ! बस, देखते ही देखते सूरतगढ़ के इतिहास में इंदिरा सर्किल ने अपनी जगह बना ली जहां से बीकानेर और श्रीगंगानगर के लिए सड़कें निकलती थी। ठीक सामने की तरफ जाल वाले बाबा रामदेव का प्राचीन मंदिर स्थित था। उन दिनों आबादी से ठीक बाहर धोरों के बीच स्थित यह सर्किल शहर के लिए प्रवेश द्वार का भी काम करता था। बीकानेर और श्रीगंगानगर से आने वाली बसें यहां विश्राम लिया करती थी जिसके चलते कुछ होटल और रेस्टोरेंट भी यहां खुल गए थे। तथ्य तो यह भी है कि इस चौक के पश्चिम दिशा की सैकड़ों बीघा सरकारी भूमि पर भूमाफियाओं ने कब्जे कर खूब चांदी काटी। अवैध कब्जों के इस खेल में सत्ता और प्रशासन की भागीदारी भी बराबर बनी रही। 

इस चौक के दुर्दिन तो 2014-15 से ही शुरू हो गए थे जब सत्ता और प्रशासन की शह के चलते बांगड़ ग्रुप की कंपनी 'श्री सीमेंट' ने यहां अपना झंडा और 'लोगो' रोप दिया था। कंपनी के इस कृत्य पर विपक्ष और जन विरोध के सुर भी उठे थे लेकिन उनमें वह ताकत नहीं थी जो किसी कॉरपोरेट की मनमानी को रोक सके। उस समय श्री सीमेंट प्रबंधन ने इंदिरा सर्किल के सौंदर्यकरण को लेकर बड़ी-बड़ी बातें की थी। दिखावटी तौर चौक की रेलिंग रिपेयर की गई और  कुछ पौधे भी लगाए गए  मगर सार-संभाल के अभाव में सब दम तोड़ गये। आलम यह बना कि सर्कल की साज़-सज्जा तो दूर, चौक के चारों तरफ घूमते टूटे हुए हाईवे से उड़ती धूल के गुबार चौतरफा छाने लगे। 

पिछले 7-8 साल से नेशनल हाईवे पर कमल  होटल से स्टेडियम तक फ्लाईऑवर का निर्माण जारी है। 'कानी के ब्याह में सौ कौतुक' जैसी कथा वाले इस ओवरब्रिज ने इंदिरा सर्किल के अस्तित्व को मिट्टी में मिला दिया है। जो थोड़े बहुत अवशेष बचे हुए हैं वह भी बड़ी जल्दी सूरतगढ़ के इतिहास में दफन होने वाले हैं। विकास की कुछ कीमत तो आखिर शहरवासियों को चुकानी ही पड़ेगी । ऐसे में गीतकार नीरज की पंक्तियां याद आती है- 

स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से,

लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से,

और हम खड़े खड़े बहार देखते रहे

कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे...! 

-डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'

Thursday, 13 March 2025

बीकानेर थियेटर फेस्टिवल : कला और संस्कृति का कुंभ

 

मुझे लगता है मैं महाकुंभ न सही, कुंभ  स्नान तो कर ही आया हूं। 'बीकानेर थियेटर फेस्टिवल' में भाग लेने की अनुभूति किसी भागवत कथा के श्रवण समान ही सुखदायी रही, मन संवेदना और भावनाओं के सागर में डुबकियां लगता रहा। मेरे जैसे ढोल के लिए तो यह कुंभ स्नान ही हुआ ना ! 


दरअसल, 'बीकानेर थिएटर फेस्टिवल' रंगमंच, साहित्य और कला का समुच्चय भर नहीं है बल्कि यह दुनियाभर की सांस्कृतिक विरासत, नाट्य शास्त्र की परंपराओं और कलाओं को समसामयिक संदर्भों में बांचने का अद्भुत आयोजन है। यह फेस्टिवल पिछले 9 सालों से प्रतिवर्ष आयोजित हो रहा है। इस बार 8 मार्च को शुरू हुए पांच दिवसीय उत्सव में 20 से अधिक नाटकों का मंचन हुआ, नुक्कड़ नाटक खेले गए, नाट्य प्रशिक्षण कार्यशाला और रंग संवाद आयोजित किये गए । इन नाटकों का मंचन बीकानेर के टाउन हॉल, रविंद्र रंगमंच, और टीएन ऑडिटोरियम में हुआ। मेट्रोपोलिटन शहरों में होने वाली नाटक प्रस्तुतियों में अक्सर दर्शकों का अकाल रहता है, वहीं एशिया के सबसे बड़े गांव कहे जाने वाले बीकानेर में सभी हॉल दर्शकों से खचाखच भरे रहे। 


इस फेस्टिवल में देश भर के नाट्य मंडलों ने अपनी शानदार प्रस्तुतियां दी। इन प्रस्तुतियों में लखनऊ ग्रुप के नाटक 'भगवद्ज्जुकीयम',  जोरहाट असम की प्रस्तुति 'द रिलेशन', राष्ट्रीय कला मंदिर श्रीगंगानगर का नाटक 'ये लोग ये चूहे' और मुंबई ग्रुप का 'गोल्डन बाजार' अभिनय और कल की दृष्टि से बेहद शानदार रहे। दिल्ली ग्रुप के नुक्कड़ नाटक भी अपना प्रभाव छोड़ने में कामयाब रहे। वरिष्ठ रंग कर्मी और साहित्यिकार मधु आचार्य मानते हैं कि नाटक का प्रस्तुतीकरण ऋषि कर्म है। उनकी बात से सहमत हुआ जा सकता है क्योंकि नाटक में साहित्य, संगीत, नृत्य, वेशभूषा, चित्रकला, वास्तु शास्त्र सहित नवरस विद्यमान रहते हैं। इन सब विधाओं का सामूहिक निर्वहन अत्यंत दुष्कर है, इसके लिए पूर्ण समर्पण, निष्ठा और अनुशासन आवश्यक तत्व हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की नाटक में रिटेक जैसा कुछ भी नहीं होता। अच्छा हो या बुरा, जो भी घटित होना है, दर्शकों के सामने होना है। शायद यही कारण है कि रंगमंच को समस्त कलाओं में सर्वोपरि माना जाता है। 

बीकानेर के इस उत्सव में देश के अलग-अलग हिस्सों से आए विद्वजनों और समर्पित कलाकारों से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ। नए विचार और गहन चिंतन भरे संवाद दिल दिमाग में अब भी गूंज रहे हैं। सच कहूं तो शब्द और कला के कुशल चितरे भायले हरीश बी. शर्मा के स्नेहिल निमंत्रण से यह कुंभ यात्रा अनूठी बन पड़ी है। कला संगम  की इस यात्रा में श्री राजूराम बिजारणिया और श्रीमती आशा शर्मा सहयात्री बने, उन्होंने भी इस उत्सव का भरपूर आनंद लिया। हम सबकी तरफ से बीकानेर थिएटर फेस्टिवल के आयोजकों को अलेखूं बधाइयां और उत्तरोत्तर प्रगति की मंगल कामनाएं। 

थियेटर संग पुस्तक दीर्घा : हरीश बी शर्मा का नवाचार 

बीकानेर थियेटर फेस्टिवल में बिखरे  रंगों के बीच हरीश बी. शर्मा द्वारा किया गया पुस्तकीय नवाचार एक सराहनीय कदम है । गायत्री प्रकाशन और पारायण फाउंडेशन की इस पुस्तक-दीर्घा योजना में लोगों का खासा उत्साह रहा। हंसा गेस्ट हाउस में इस बार दीर्घा के साथ किताबें बैठकर पढ़ने के लिए भी इंतजाम किए गए ताकि पाठक यहां बैठकर भी अपनी पसंद की किताबें पढ़ सकें। इस योजना के तहत देशभर के लेखकों की पुस्तकें समान भाव से रखी जाती है ताकि पाठक को प्रकाशक के बैरियर और मनोपोली का नुकसान नहीं हो। दीर्घा में प्रदर्शित पुस्तकें अगर किसी पाठक को खरीदनी हो तो वो संबंधित लेखक या प्रकाशक से संपर्क कर सकता है। लेखक और पाठक के बीच सेतु के रूप में यह कार्य पूरी तरह से अव्यवसायिक है जिसका एकमात्र उद्देश्य पुस्तकों के प्रति पाठकों में संवेदना जागृत करना है जिससे वे किताब पढ़ने के मार्ग पर पुन: लौट सकें। 

-डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'

सोनी बने जननायक, संकल्प, संघर्ष और समर्पण का हुआ सम्मान

  भाजपा नेता राजकुमार सोनी फोकस भारत, जयपुर के कांक्लेव  डायनामिक लीडर ऑफ राजस्थान में  "जननायक" चुने गए हैं।  जयपुर, 30 अप्रेल। भ...

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