जब किसी रचना में कथ्य और बिंब सहज होने के साथ परिचित से लगने लगें तो उसमें पाठकीय उत्सुकता जागना स्वाभाविक है। ऐसे कथानक साधारण होने के बावजूद पाठक को बांधने की क्षमता रखते हैं। यूं भी कहा जा सकता है कि साधारण चीजों में ही विशिष्टता छिपी रहती है। बात लेखन की हो तो यह तथ्य और अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है।
प्रेमलता सोनी का नया उपन्यास 'मंडी गैंग' इसी बात की साख भरता है। अपने पहले उपन्यास में ही प्रेमलता जी ने लेखकीय कौशल का परिचय दिया है। उपन्यास की भाषा और शिल्प सरल होने के साथ सुग्राह्य है तथा अनावश्यक जटिलता से बचा गया है। जरूरत के अनुसार 'बोल्ड' शब्द भी काम में लिए गए हैं। उपन्यास का कथानक कहीं भी टूटता नहीं है और मंथर गति से पाठक को साथ बहा ले जाता है।
सब्जी मंडी से शेयरबाजार तक की महत्वाकांक्षी उड़ान भरते इस उपन्यास के किरदारों को बेहद खूबसूरती के साथ गढ़ा गया है। हर पात्र का अपना एक अलग अंदाज है, स्वतंत्र अभिव्यक्ति है जो किसी दूसरे पर आश्रित नहीं है। कथानक में एक ओर सब्जी मंडी का आंतरिक वातावरण प्रस्तुत किया गया है तो वहीं ब्याज का धंधा करने वाले छोटे फायनेंसर्स की चाल और चरित्र को उभारा गया है। सामाजिक रूप से कमोबेश हर शहर में ऐसे किरदार देखे जा सकते हैं।
उपन्यास का नायक जितेश है जिसकी जिंदगी को रिंग रोड के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इस रोड पर उसे मंचन, गीता, इंदिरा, ओमी, इरशाद, रूपेश और पंकज सरीखे किरदार मिलते हैं जिनके साथ कथानक आगे बढ़ता है। पैसा कमाने की लालसा किसे नहीं होती लेकिन उसके लिए जुनून पैदा करना पड़ता है। इस जुनून का एक रास्ता अति महत्वाकांक्षा के रूप में बर्बादी की तरफ भी जाता है। जितेश का किरदार इसका जीवंत उदाहरण है। जितेश की पत्नी बरखा के रूप में लेखिका ने मध्यमवर्गीय भारतीय परिवारों में महिलाओं की स्थिति का बखूबी चित्रण किया है। सब्जी मंडी में मजदूरी करने वाली महिलाओं के चरित्र भी रोचक ढंग से प्रस्तुत किए गए हैं । उनके जीवन संघर्ष को बेहतर ढंग से उभारा गया है।
इस उपन्यास को पढ़ते समय पाठक अनायास ही जयपुर के माहौल से परिचित हो जाता है। चांदपोल, नाहरी का नाका, गोविंद देव जी मंदिर और आमेर महज शब्द भर नहीं हैं बल्कि एक पूरी सांस्कृतिक विरासत को समेटे हुए हैं। उनके आसपास पसरे हुए यथार्थ और संवेदनाओं को इस उपन्यास के ताने-बाने में बखूबी पिरोया गया है।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि जयपुर के कलमकार मंच द्वारा प्रकाशित यह उपन्यास महिला लेखन के क्षेत्र में नई उम्मीद जगाता है। प्रेमलता जी ने इस उपन्यास के माध्यम से अपनी लेखन प्रतिभा परिचय दिया है। उम्मीद की जानी चाहिए आने वाले दिनों में उनकी कलम से और बेहतर रचाव पढ़ने को मिलेगा।
-डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'
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