Search This Blog

Tuesday 25 August 2020

करोड़ों की वाणिज्यिक जमीन को आवासीय के रूप में बेचने की तैयारी

- दिन दहाड़े जनता की आंख में धूल झोंकने की साजिश.

- लंबी तान कर सोए हैं विपक्षी पार्षद.
...............................................

सूरतगढ़ नगर पालिका की बेवकूफी कहें या जरूरत से ज्यादा होशियारी, उसके प्रशासक अक्सर खुद की फजीहत करवाने के लिए आमादा रहते हैं. इसका ताजा उदाहरण है बीकानेर रोड पर स्थित बेशकीमती वाणिज्यिक भूमि की आवासीय भूखंडों के रूप में की जा रही नीलामी. पूर्व विधायक हरचंद सिंह सिद्धू के आवास के ठीक सामने स्थित यह है वही जमीन है जहां कुछ दिन पूर्व तक नौजवान वॉलीबॉल खेलते थे. इस जगह की बीकानेर रोड पर खुलती दिशा में सब्जी की रेहड़ियां लगती है और पीछे की तरफ उप पंजीयक कार्यालय वाली सड़क है. तीन तरफ सड़क वाली इस बेशकीमती जमीन के एक हिस्से पर न्यायालय के आदेश से कुछ समय पूर्व ही एक व्यक्ति को कब्जा सौंपा गया है. इसके बाद ही नगरपालिका ने शेष बची भूमि पर अपने स्वामित्व के बोर्ड लगाए हैं. जबकि इससे पूर्व प्रशासकों को शायद पता ही नहीं था कि यह जमीन भी पालिका की है.


उल्लेखनीय यह है कि इस बेशकीमती भूमि की लोकेशन देखकर अनजान आदमी भी बता सकता है कि यह जमीन पूरी तरह से वाणिज्यिक गतिविधियों के काम की है. बाजार के ठीक बीच में स्थित होने के कारण इस जमीन का बाजार भाव करोड़ों रुपए में है लेकिन नगरपालिका ऐसी शानदार जगह को 20 गुणा 50 के आवासीय भूखंडों में काटकर बेचने जा रही है. इसकी सार्वजनिक नीलामी घोषणा भी कर दी गई है.


पालिकाध्यक्ष ओमप्रकाश कालवा का कहना है कि मास्टर प्लान में यह भूमि आवासीय दर्शाई गई है और डीडीआर से इसका प्लान अनुमोदित करवाने के बाद ही नीलामी जारी की गई है. 


अधि.अधिकारी मिल्खराज चुघ से पूछा गया तो उन्होंने बड़ा हास्यास्पद बयान दिया कि उन्हें इस बाबत ज्यादा जानकारी नहीं है. वे फाइल देख कर ही बता सकते हैं कि पालिका द्वारा इस जमीन के भू उपयोग परिवर्तन हेतु कोई कार्रवाई की गई है अथवा नहीं. पालिका की बाजार में स्थित करोड़ों रुपए की एक महत्वपूर्ण संपत्ति की नीलामी हो और उसके संबंध में ईओ अपनी अनभिज्ञता जारी करे, यह गले नहीं उतरती. यदि वाकई उन्हें जानकारी नहीं है तो फिर इस शहर का भगवान ही मालिक है.


इसीलिए इस नीलामी पर कई महत्वपूर्ण सवाल उठते हैं जो पालिका प्रशासन की कार्यशैली को भ्रष्टाचार के कटघरे में खड़ा करते हैं :-


1. क्या पालिका ने डीडीआर और सरकार को इस भूमि के वाणिज्यिक होने और उसके राजस्व मूल्य की उपयोगिता से अवगत करवाया था ?


2. यदि मास्टर प्लान में कोई खाली जगह वर्षों पूर्व आवासीय दर्शाई गई है और वर्तमान में वह वाणिज्यिक उपयोग की है तो करोड़ों की राजस्व प्राप्ति को ध्यान में रखते हुए उसके भू परिवर्तन हेतु नगर पालिका ने अब तक क्या कार्यवाही की ?


3.पूर्व में भी सरकारों द्वारा जनहित और राजस्व प्राप्ति को ध्यान में रखते हुए मास्टर प्लान के कई हिस्सों को डिनोटिफाइड किया गया है तो फिर इस जमीन के संबंध में पालिका द्वारा प्रयास क्यों नहीं किए गए ?


4. नीलामी के पश्चात इन आवासीय भूखंडों का वाणिज्यिक उपयोग नहीं होगा, इसे नगरपालिका कैसे सुनिश्चित कर पाएगी ?


5. भूखंड आवंटित होने के बाद यदि कोई आवंटी उसे वाणिज्यिक करवाना चाहेगा तो क्या नगरपालिका उसे रोक पाएगी ? यदि रोकेगी तो क्या वह आवंटी न्यायिक प्रक्रिया से अपने हितों की रक्षा नहीं करेगा ? उस समय नगरपालिका को सिर्फ शुल्क के रूप में मिलने वाली भू रूपांतरण राशि पर संतोष करना होगा.


6. और सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस नीलामी से नगर पालिका को होने वाले करोड़ों रुपए के राजस्व नुकसान की जवाबदेही किसकी होगी ?


नगरपालिका मंडल में विपक्ष की भूमिका निभा रहे भाजपा के पार्षदों की चुप्पी भी संदेह के घेरे में है. यदि समय रहते विपक्ष अपनी भूमिका निभाता तो यह संभव ही नहीं था कि पालिका इस जमीन की आवासीय नीलामी घोषणा जारी कर दे. इस मामले में विधानसभा सत्र से लौट रहे विधायक रामप्रताप कासनिया का कहना था कि वास्तव में यह जमीन तो वाणिज्यिक है. लेकिन नगरपालिका ऐसा क्यों कर रही है, इसकी गहन पड़ताल की जाएगी.


गौरतलब है कि पूर्व पालिकाध्यक्ष काजल छाबड़ा के कार्यकाल के अंतिम दिनों में इंदिरा सर्किल पर स्थित वाणिज्यिक भूमि को आवासीय के रूप में बेचने की ऐसी ही कवायद की गई थी जिसे न्यायालय के आदेश द्वारा रुकवा दिया गया था. यह जमीन भी करोड़ों रुपए मूल्य की थी जिसे पालिका मिलीभगत के साथ औने-पोने दामों में आवासीय भूखंडों में बेचना चाहती थी.


होना तो यह चाहिए कि नगरपालिका इस जमीन का भू उपयोग परिवर्तन करवाए और उसके बाद इसे वाणिज्यिक भूखंडों के रूप में नीलाम करें. विकल्प के रूप में शहर के बीचोबीच स्थित इस भूमि पर यदि पालिका खुद का व्यवसायिक कांपलेक्स खड़ा करे तो उसे प्रतिमाह लाखों रुपए की आय किराये के रूप में हो सकती है. शहर के भीड़ भरे क्षेत्रों में स्थित सारे बैंक इस कॉम्पलेक्स में लाए जा सकते हैं और वहां यातायात की समस्या का भी समाधान हो सकता है.


देश में जहां भाजपा सरकार द्वारा सरकारी उपक्रमों के किए जा रहे निजीकरण की कांग्रेस आलोचना कर रही है वहीं स्थानीय स्तर पर खुद उसका पालिका बोर्ड इस ढंग से सरकारी संपत्तियों का निस्तारण करने में लगा हैं तो बदलाव की उम्मीद करना बेमानी है.


डॉ. हरिमोहन सारस्वत


No comments:

Post a Comment

आलेख पर आपकी प्रतिक्रियाओं का स्वागत है. यदि आलेख पसंद आया हो तो शेयर अवश्य करें ताकि और बेहतर प्रयास किए जा सकेंं.

सावधान ! पुलिस के नाम पर ब्लैकमेल करने का नया गोरखधंधा

-   पुलिस अधिकारियों की डीपी लगे व्हाट्सएप नम्बरों से आती है कॉल - साइबर क्राइम मामलों पर पुलिस और गृह मंत्रालय की बेबसी 'हैलो' कौ...

Popular Posts