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Friday, 4 July 2025

देश, काल और समाज की चिंताओं का नवबोध कराती कहानियां

 

(पुस्तक समीक्षा)

राजस्थानी भाषा के आधुनिक कथाकारों में मदन गोपाल लढ़ा एक भरोसे का नाम है। मानवीय संबंधों में पसरी संवेदनाओं को लेकर वे अपने भाषायी कौशल और शिल्प से खूबसूरत कहानियां रचते हैं।  इन दिनों उनका नवप्रकाशित राजस्थानी कहानी संग्रह 'बीज, बूंटो अर चियां' चर्चा में है। बोधि प्रकाशन, जयपुर से प्रकाशित इस संग्रह में पन्द्रह कहानियां हैं जो अपने नवीन कथ्य और कहन शैली के चलते पाठकों पर खासा प्रभाव छोड़ती है। इन कहानियों को आधुनिक राजस्थानी की प्रतिनिधि कहानियों के रूप में देखा जा सकता है। 


कहानी साहित्य की सबसे लोकप्रिय विधा है। एक कहानीकार अपने कथानक के किरदारों को पल-प्रतिपल जीता है, उनकी संवेदनाओं को महसूस करता है तभी एक सुघड़ कहानी का जन्म होता है। शिद्दत से लिखी गई कहानी की खूबसूरती यही होती है कि वह गाहे-बगाहे खुद को पढ़वा लेने की क्षमता रखती है। बिना किसी गुम्फित कथानक और शाब्दिक चाशनी के भी कहानी कही जा सकती है, बशर्ते कथाकार में कहन क्षमता हो। ऐसी ही कहानियां लढ़ा के इस संग्रह में देखने को मिलती है। 


संग्रह की पहली कहानी 'सिल्ली-सिल्ली औंदी ए हवा' का कथ्य पाठक के अंतर्मन को झकझोर देता है। यह कहानी कई भारतीय भाषाओं में अनूदित भी हो चुकी है। कोरोनाकाल के दौरान मानवीय मूल्यों की गिरावट  'देस बिराना' कहानी में  देखी जा सकती है जहां कथा का नायक अपने पड़ोसियों के बदले व्यवहार से दु:खी होकर अपने मकान की बिकवाली निकाल देता है। संग्रह की  शीर्षक कहानी 'बीज, बूंटो अर चियां' स्त्री पुरुष के मध्य प्रेम के आधुनिक मनोभावों को तीन दृश्यों में खूबसूरती से प्रस्तुत करती है। इसी प्रकार 'तीजी आंख' कहानी में दूसरे के अंतर्मन को समझने वाला विषय लिया गया है वहीं 'सनेपी' कहानी अंधकार में डूबते मानवीय संबंधों के बीच रोशनी की एक किरण दिखाती है। यही आस्था, उम्मीद और विश्वास इन कहानियों की खूबसूरती है। 


पुस्तक की छपाई और साज सज्जा आकर्षक है। राजस्थानी के पाठकों के लिए यह एक पठनीय कहानी संग्रह कहा जा सकता है।


समीक्षक : डॉ हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'


किताब : बीज, बूंटो अर चियां, विधा : कहानी, प्रथम संस्करण : 2025, प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर

1 comment:

  1. आपकी पारखी टीप के लिए बहुत आभार।

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